कुगदा। प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी ग्राम कुगदा कुम्हारी में
18 दिसंबर को गुरु घासीदास जयंती के अवसर पर छत्तीसगढ़
की लोकप्रिय गायिका चंपा निषाद का रात्रिकालीन सांस्कृतिक
कार्यक्रम आयोजित किया गया है। इसके अतिरिक्त, 19 दिसंबर
को ग्रामवासियों के सहयोग से एक भव्य शोभा यात्रा का आयोजन भी किया गया है।
इसकी जानकारी रोहित कुर्रे, खुमान सिंह मारकंडे, राजू मारकंडे,
रूपेश कुर्रे, मुकेश चेलक, एवं तेजा डहरिया द्वारा दी गई।
गुरु घासीदास: छत्तीसगढ़ के महान संत
घासीदास 19वीं सदी के एक महान संत और समाज सुधारक थे,
जिन्होंने छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ की स्थापना की। उन्होंने समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे छुआछूत,
जातिवाद और अंधविश्वास के खिलाफ आवाज उठाई और सभी को समानता का संदेश दिया।
प्रारंभिक जीवन
- जन्म: 18 दिसंबर 1756 को छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के गिरौदपुरी गांव में हुआ था।
- परिवार: एक साधारण परिवार में जन्मे गुरु घासीदास ने बचपन से ही धर्म और अध्यात्म में गहरी रुचि दिखाई।
सतनाम पंथ की स्थापना
गुरु ने सतनाम पंथ की स्थापना कर समाज में एक नई चेतना जगाई। उन्होंने सत्य, अहिंसा और सेवा को जीवन का आधार बनाया। - सतनाम पंथ के मूल सिद्धांत:
- सभी मनुष्य समान हैं।
- सत्य ही ईश्वर है।
- सेवा ही धर्म है।
- अहिंसा परम धर्म है।
समाज सुधारक
समाज सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए: - छुआछूत का अंत: उन्होंने समाज में व्याप्त छुआछूत के खिलाफ आवाज उठाई और सभी को एक समान मानने का संदेश दिया।
- महिलाओं का उत्थान: उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए भी काम किया और उन्हें शिक्षित होने के लिए प्रेरित किया।
- सामाजिक बुराइयों का खात्मा: उन्होंने जुआ, शराब और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ भी अभियान चलाया।
गुरु घासीदास की विरासत
आज भी गुरु घासीदास की शिक्षाएं लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। छत्तीसगढ़ में उनकी जयंती बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है। - गिरौदपुरी धाम: गुरु घासीदास का जन्मस्थान गिरौदपुरी आज एक तीर्थस्थल है।
- सतनामी समाज: गुरु घासीदास के अनुयायी सतनामी समाज आज भी उनके आदर्शों पर चलते हैं।